23 September, 2013

MUKTAK HINDI- ANUGRAH MISHRA

"मेरी आखों में रोशन है जो वीरानी, तुम्हारी है
बिछुड़ कर तुम से ज़िन्दा हूँ ये हैरानी, तुम्हारी है
मेरी हर साँस में लय है तुम्हारे दर्द की मुश्किल ,
मग़र इस दर्द की हर एक आसानी, तुम्हारी है ....."


" समझा किसी ने, जाना किसी ने ,
हम ने बताया, माना किसी ने ,
मुहब्बत के ये कायदे भी अजब हैं ,
खोना किसी ने, पाना किसी ने......... .

खुद से मुह मोड़ तो नहीं सकते ,
हम तुम्हें छोड़ तो नहीं सकते
दिल जो तोडा है तुमने शिद्दत से ,
अब इसे जोड़ तो नहीं सकते ......

तुझे सोचने में ये दिन गया,तुझे मांगने में ये शब गयी ,
मेरी जीस्त से मैं विदा हुआ , मेरी ज़िन्दगी से तू कब गयी ?
मेरे दिल कि खाली सराय में किसी शाम कोई जो रुक गया
मुझे बारहा ये भरम हुआ ,कि तू अब गयी कि तू अब गयी ....


"जो भी ज्यादा या कम समझतें हैं ,तुम को बस एक हम समझतें हैं
हम ठहाकों का दर्द जीतें हैं ,लोग आँसूं को गम समझतें हैं
इसलिए बिस्तरा नहीं करते ,खवाब आखों को नम समझतें हैं
जो समझा तमाम उम्र हमें ,हम उसे दम दम समझतें हैं....."

तेरे वजूद की रग-रग में यूँ पैबस्त हैं हम
हमारे दावे की अज़ियत को आजमाया कर
हमें कुबूल नहीं है तेरा उदास बदन
तू अपने आप से मिल कर भी मुस्कुराया कर ...

"चाँद को इतना तो मालूम है कि तू प्यासी है, तो फिर उस के निकलने का इंतजार ना कर भूख गर जब्त से बाहर है तो कैसा रोज़ा ? इन गवाहों कि ज़रूरत पे मुझे प्यार ना कर ..."

दिल में रहने के तकादे बहुत पुराने हैं ,
कुछ मकानों के किराये मग़र चुकाने हैं ,
मैं इन्हें खुद से अलग रक्खूँ तो कैसे रक्खूँ ,
इन थकानों के मेरे पावों में ठिकाने हैं ........

तुझ को गुरुर हुस्न है मुझ को सुरूर फ़न,
दोनों को खुदपसंदगी की लत बुरी भी है ,
तुझ में छुपा के खुद को मैं रख दूँ
मग़र मुझे, कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है ...

जिस्म का आखरी मेहमान बना बैठा हूँ,
एक उम्मीद का उन्वान बना बैठा हूँ,
वो कहाँ है ये हवाओं को भी मालूम है,
मगर,एक मैं ही हूँ जो अनजान बना बैठा हूँ ...

"सारे गुलशन में तुझे ढूंड के मैं नाकारा,
अब हर एक फूल को खुद अपना पता देता हूँ ..
कितने चेहरों में झलक तेरी नज़र आती है ,
कितनी आँखों को मैं बेबात जगा देता हूँ ...."

"ये वो ही इरादें हैं ये वो ही तबस्सुम है,
हर एक मोहल्लत में बस दर्द का आलम है,
इतनी उदास बातें, इतना उदास लहजा ,
लगता है की तुम को भी,हम सा ही कोई गम है ...."

"हर इक टूटन,उदासी,ऊब आवारा ही होती है ,
इसी आवारगी में प्यार की शुरुआत होती है ,
मेरे हँसने को उसने भी गुनाहों में गिना जिसके
हर इक आँसूं को मैंने यूँ संभाला जैसे मोती है ..."

"दीप ऐसे बुझे फिर जले ही नहीं ,
ज़ख्म इतने मिले फिर सिले ही नहीं,
व्यर्थ किस्मत पे रोने से क्या फायदा ,
सोच लेना की हम तुम मिले ही नहीं ..."

"मैं उस का हूँ वो इस एहसास से इंकार करता है ,
भरी महफ़िल में भी रुसवा मुझे हर बार करता है
यकीं है सारी दुनिया को खफा है मुझ से वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझे से प्यार करता है ....."

"हमें दो पल सुरूर इश्क में मदहोश रहने दो ,
ज़ेहन की सीढियाँ उतरो अमाँ ये जोश रहने दो ,
तुम्ही कहते थे ये मसले नज़र सुलझी तो सुलझेंगे ,
नज़र की बात है तो फिर ये लब खामोश रहने दो ....."

कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ ,
किसी की इक तरन्नुम में तराने भूल आया हूँ ,
मेरी अब राह मत तकना कभी आसमाँ वालों !
मैं इक चिड़िया की आखों में उड़ाने भूल आया हूँ .

"चाँद को इतना तो मालूम है तू प्यासी है,
तू भी अब उस के निकलने का इंतजार ना कर ,
भूख गर जब्त से बाहर है तो कैसा रोज़ा ?
इन गवाहों की ज़रूरत पे मुझे प्यार ना कर ..."

"गम में हूँ या हूँ शाद मुझे खुद पता नहीं ,
खुद को भी हूँ मैं याद मुझे खुद पता नहीं,
मैं तुझ को चाहता हूँ मग़र मांगता नहीं ,

मौला मेरी मुराद मुझे खुद पता नहीं ...."

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