"उसी की तरहा
मुझे सारा ज़माना
चाहे ,
वो मेरा होने
से ज्यादा मुझे
पाना चाहे ,
मेरी पलकों से फिसल
जाता है चेहरा
तेरा ,
ये मुसाफिर तो कोई
और ठिकाना चाहे
,
एक बनफूल था इस
शहर में वो
भी ना रहा
,
कोई अब किस
के लिए लौट
के आना चाहे
,
ज़िन्दगी हसरतों के साज़
पे सहमा-ठिठका
,
वो तराना है जिसे
दिल नहीं गाना
चाहे ,
हम अपने बदन
से कुछ इस
तरह हुए रुखसत
,
साँस को छोड़
दिया जिस तरफ
जाना चाहे....!"
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