22 September, 2013

KANHA

विश्व को मोह मय महिमा के असंख्य स्वरुप दिखा गया कान्हा,
सारथि तो कभी प्रेमी बना तो कभी गुरुधर्म निभा गया कान्हा,
रूप विराट तो धरा तो धरा तो धरा हर लोक पे छा गया कान्हा,
रूप किया लघु तो दोई कनाके यशोदा की गोद में गया कान्हा,
चोरी छुपे चढ़ बैठा अटारी पे तो, चोरी से माखन खा गया कान्हा,
गोपियों के कभी चीर चुराए तो, कभी मटकी चटका गया कान्हा,
थाक था ढोर वो बड़ा चितचोर , चोरी में नाम कमा गया कान्हा,

मीरा के देन के सेन की नींद और राधा का चैन चुरा गया कान्हा,

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