13 October, 2014

PD. ATAL BIHARI'S POETRY- ANUGRAH MISHRA



विजय का पर्व!
जीवन संग्राम की काली घड़ियों में
क्षणिक पराजय के छोटे-छोट क्षण
अतीत के गौरव की स्वर्णिम गाथाओं के
पुण्य स्मरण मात्र से प्रकाशित होकर
विजयोन्मुख भविष्य का
पथ प्रशस्त करते हैं।

अमावस के अभेद्य अंधकार का—
अन्तकरण
पूर्णिमा का स्मरण कर
थर्रा उठता है।

सरिता की मँझधार में
अपराजित पौरुष की संपूर्ण
उमंगों के साथ
जीवन की उत्ताल तरंगों से
हँस-हँस कर क्रीड़ा करने वाले
नैराश्य के भीषण भँवर को
कौतुक के साथ आलिंगन
आनन्द देता है।

पर्वतप्राय लहरियाँ
उसे
भयभीत नहीं कर सकतीं
उसे चिन्ता क्या है ?

कुछ क्षण पूर्व ही तो
वह स्वेच्छा से
कूल-कछार छोड़कर आया
उसे भय क्या है ?
कुछ क्षण पश्चात् ही तो
वह संघर्ष की सरिता
पार कर
वैभव के अमिट चरण-चिह्न
अंकित करेगा।

हम अपना मस्तक
आत्मगौरव के साथ
तनिक ऊँचा उठाकर देखें
विश्व के गगन मंडल पर
हमारी कलित कीर्ति के
असंख्य दीपक जल रहे हैं।

युगों के बज्र कठोर हृदय पर
हमारी विजय के स्तम्भ अंकित हैं।
अनंत भूतकाल
हमारी दिव्य विभा से अंकित हैं।

भावी की अगणित घड़ियाँ
हमारी विजयमाला की
लड़ियाँ बनने की
प्रतीक्षा में मौन खड़ी हैं।

हमारी विश्वविदित विजयों का इतिहास
अधर्म पर धर्म की जयगाथाओं से बना है।
हमारे राष्ट्र जीवन की कहानी

विशुद्ध राष्ट्रीयता की कहानी है।

No comments:

Post a Comment