स्याही सूखी, कलम भी टूटी,
सपने भी टूटे तो क्या,
अभी शेष समंदर मन में,
आंसू भी सूखे तो क्या।
पत्ता-पत्ता डाली-डाली,
बरगद भी सूखा तो क्या,
जड़े शेष जमीं में बाकी,
गुलशन भी सूखा तो क्या,
स्याही सूखी, कलम भी टूटी,
सपने भी टूटे तो क्या,
अपने रूठे, सपने झूठे,
जग भी छूट गया तो क्या,
जन्मों का ये संग है अपना,
छूट गया इक जिस्म तो क्या
स्याही सूखी, कलम भी टूटी,
सपने भी टूटे तो क्या।
सपने भी टूटे तो क्या,
अभी शेष समंदर मन में,
आंसू भी सूखे तो क्या।
पत्ता-पत्ता डाली-डाली,
बरगद भी सूखा तो क्या,
जड़े शेष जमीं में बाकी,
गुलशन भी सूखा तो क्या,
स्याही सूखी, कलम भी टूटी,
सपने भी टूटे तो क्या,
अपने रूठे, सपने झूठे,
जग भी छूट गया तो क्या,
जन्मों का ये संग है अपना,
छूट गया इक जिस्म तो क्या
स्याही सूखी, कलम भी टूटी,
सपने भी टूटे तो क्या।
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