29 December, 2013
25 October, 2013
12 October, 2013
03 October, 2013
01 October, 2013
24 September, 2013
लिखू तो क्या लिखू.. हर पन्ने पे तेरी तस्वीर नज़र आती है..
तुम्ही पे मरता
है ये दिल
,अदावत क्यों नहीं करता
,
कई जन्मे से बंधी
है , बगावत क्यों
नहीं करता
कभी तुम से
थी जो वही
शिकायत है ज़माने
से,
मेरी तारीफ करता है
मुहब्बत क्यों नहीं करता
?
"तुम्हारे
पास हूँ लेकिन
जो दूरी है
समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी
हस्ती अधूरी है
समझता हूँ
तुम्हे मै भूल
जाऊँगा ये मुमकिन
है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना
सबसे ज़रूरी है
समझता हूँ"
कोई कब तक
महज़ सोचे कोई
कब तक महज़
गाये ?
इलाही क्या ये
मुमकिन है कि
कुछ ऐसा भी
हो जाये ?
मेरा महताब उसकी रात
के आग़ोश में
पिघले
मैं उसकी नींद
में जागूं वो
मुझमे घुल के
सो जाये ..."
जिन की आखों
में सपने हैं,होठों पर अंगारें
हैं ,
जिन के जीवन-मृग पूँजी
की क्रीडाओं ने
मारे हैं,
जिन के दिन
और रात रखें
हैं गिरवीं साहूकारों
पर,
जिन का लाल
रक्त फैला है
संसद की दीवारों
पर,
मैं उन की
चुप्पी को अब
हुँकार बनाने वाला हूँ
.
मैं उन की
हर सिसकी को
ललकार बनाने वाला
हूँ ...
"नेकियों
का सिला बदी
में मिले और
शोहरत की कमाई
क्या है
इस बुलंदी पे आ
के जाना है
,अच्छा होने में
बुराई क्या है...
"
"कलम को ख़ून
में खुद के
डुबोता हूँ तो
हँगामा,
गिरेबाँ अपना आँसू
में भिगोता हूँ
तो हँगामा,
नहीं मुझ पर
भी जो खुद
की खबर वो
हैं ज़माने पर,
मैं हँसता हूँ तो
हँगामा,मैं रोता
हूँ तो हँगामा
...."
ज़िन्दगी पर इससे
बढ़कर तंज़ क्या
होगा ‘फ़राज़’
उसका ये कहना
कि तू शायर
है, दीवाना नहीं.
"तुम ने कुछ
पढ़ दिया दुआ
में क्या ..?
फिर से तबियत
में कुछ आराम
सा है ...."
थकन ,टूटन ,उदासी ,ऊब
,तन्हाई,अधूरापन ,
तुम्हारे याद के
संग इतना लम्बा
कारवाँ क्यूँ है ...." Fever ....
"कुछ न करने
में कुछ मज़ा
तो है ,
ये मज़ा हम
को क्यूँ नहीं
आता ...."
"घर से निकला
हूँ तो निकला
है घर भी
साथ मेरे
देखना ये है
कि मंज़िल पे
कौन पहुँचेगा ,
मेरी कश्ती में भँवर
बांध के दुनिया
ख़ुश है
दुनिया देखेगी कि साहिल
पे कौन पहुँचेगा
.....
"माँ,बहन,बेटी
या महबूब के
साये से जुदा,
एक लम्हा न हो,
उम्मीद करता रहता
हूँ
एक औरत है
मेरी रूह में
सदियों से दफ़न
,
हर सदा जिस
कि,मैं बस
"गीत" करता रहता
हूँ ...
"हमें
बेहोश कर साकी
,पिला भी कुछ
नहीं हम को
करम भी कुछ
नहीं हम को
,सिला भी कुछ
नहीं हम को
मुहब्बत ने दिया
है सब, मुहब्बत
ने लिया है
सब
मिला भी कुछ
नहीं हम को
,गिला भी कुछ
नहीं हम को
......"
इंशा जी उठो
अब कूच करो,इस शहर
में जी को
लगाना क्या!
वहशी का सुकूं
से क्या मतलब,जोगी का
नगर में ठिकाना
क्या!!
इस दिल के
दरिदा दामन में,देखो तो
सही सोचो तो
सही,
जिस झोली में
सौ छेद हुए,उस झोली
का फ़ैलाना क्या!
शब बीती चाँद
भी डूब चला,
जंजीर पड़ी दरवाजे
पे,
क्यूँ देर गए
घर आए हो,
सजनी से करोगे
बहाना क्या?
"वो एक दिन
जो मुकरर्र था
मुहब्बत के लिए
,
वो एक दिन
तो तुझे सोचने
में बीत गया
...."
अब उसे कैसे
बताऊँ कि अकेला
हूँ मैं ,
भीड़ में मुझ
को घिरा देख
के जो लौट
गया .....
भटक के आ
गए हम उस
जगह शबे-हिज्राँ
,
जहाँ जमीं न
मिले और फलक
नहीं पहुंचे
तेरी गिरफ़्त से छुटना
ना रास आया
हमें ,
ऐसे आज़ाद हुए खुद
तलक नहीं पहुंचे
..."
रोज़ आ जाते
हो तुम नींद
की मुंडेरों पर,
बादलों मे छुपे
एक ख़्वाब का
मुखड़ा बन कर
"पूजा
का दीपक बिन
बाले खुद जल
जाता है ...
माँ का आना
घर भर को
मालूम चल जाता
है ...
खुद को फैलाओ
कभी आसमाँ की
बाँहों सा,
तुम मे घुल
जाए कोई चाँद
का टुकड़ा बन
कर .
"एक-दो रोज़
में हर आखँ
ऊब जाती है
,
दिल को मज़िल
नहीं रस्ता समझनें
लगतें हैं .....
जिन को हासिल
नहीं वो जान
देते रहतें हैं
,
जिन को मिल
जाऊं वो सस्ता
समझनें लगतें हैं .
"तेरे
वजूद की रग-रग में
यूँ पैबस्त हैं
हम
हमारे दावे की
अज़ियत को आजमाया
कर
हमें कुबूल नहीं है
तेरा उदास बदन
तू अपने आप
से मिल कर
भी मुस्कुराया कर......"
"तेरी
उम्मीद, मिटते-मिटते भी,
एक उम्मीद छोड़ जाती
है ....."
"मेरे
पीछे जो छूट
जाते हैं, वो
भी मौसम सुहाने
होते हैं ..."
"बात ऊँची थी
मगर बात ज़रा
कम आकीं,
उस ने जज़्बात
कि औकात ज़रा
कम आकीं ,
वो फ़रिश्ता मुझे कह
कर ज़लील करता
रहा ,
मैं हूँ इंसान
मेरी जात ज़रा
कम आकीं ..."
प्रीतो तक नहीं
पहुंची बात ..तालियों का
शोर सुनते कटी
सारी रात "
उँगलियाँ आज भी
इस सोच में
उलझीं हैं फ़राज़
,उस ने किस
तरह नए हाथ
को थामा होगा
"हम मदरसे से अगर
गुज़रे तो बच्चों
ने कहा ,ये
वहीँ हैं जो
बिना इल्म के
दीवाने हुए .
"दूर वादी में
दूधिया बादल झुक
के पर्वत को
प्यार करते हैं,
दर्द कि गोद
में जहाँ ले
कर हम तेरा
इंतजार करते हैं
.
वो नज़ारे जो कभी
शौक ए तमन्ना
थे मुझे,
कर दिए एक
नज़र मे ही
पराये उस ने
,
रंगे- दुनिया भी बस
अब स्याह और
सफ़ेद लगे,
मेरी दुनिया से यूँ
कुछ रँग चुराए
उस ने ......"
किसी नज़र को
तेरा इंतज़ार आज
भी है.....
कोई कब तक
फ़क़त सोचे, कोई
कब तक फ़क़त
गाए,
इलाही क्या ये
मुमकिन है कि
कुछ ऐसा भी
हो जाए ?
मेरा महताब उस कि
रात के आगोश
में पिघले ,
मैं उस कि
नींद में जागूँ
वो मुझ में
घुल के सो
जाए ..."
"मेरी
आखों में रोशन
है जो वीरानी,
तुम्हारी है
बिछुड़ कर तुम
से ज़िन्दा हूँ
ये हैरानी, तुम्हारी
है
मेरी हर साँस
में लय है
तुम्हारे दर्द की
मुश्किल ,
मग़र इस दर्द
की हर एक
आसानी, तुम्हारी है ....."
न समझा किसी
ने,न जाना
किसी ने ,
न हम ने
बताया,न माना
किसी ने ,
मुहब्बत के ये
कायदे भी अजब
हैं ,
न खोना किसी
ने, न पाना
किसी ने.....
खुद से मुह
मोड़ तो नहीं
सकते ,
हम तुम्हें छोड़ तो
नहीं सकते
दिल जो तोडा
है तुमने शिद्दत
से ,
अब इसे जोड़
तो नहीं सकते
....
हिम्मत से सच
कहो तो बुरा
मानते हैं लोग,
रो-रो के
बात कहने कि
आदत नहीं रही
...
जो भी ज्यादा
या कम समझतें
हैं ,तुम को
बस एक हम
समझतें हैं
हम ठहाकों का दर्द
जीतें हैं ,लोग
आँसूं को गम
समझतें हैं
इसलिए बिस्तरा नहीं करते
,खवाब आखों को
नम समझतें हैं
जो न समझा
तमाम उम्र हमें
,हम उसे दम
ब दम समझतें
हैं.....".
तुझ को गुरुर
ए हुस्न है
मुझ को सुरूर
ए फ़न,
दोनों को खुदपसंदगी
की लत बुरी
भी है ,
तुझ में छुपा
के खुद को
मैं रख दूँ
मग़र मुझे, कुछ रख
के भूल जाने
की आदत बुरी
भी है .
जिस्म का आखरी
मेहमान बना बैठा
हूँ,
एक उम्मीद का उन्वान
बना बैठा हूँ,
वो कहाँ है
ये हवाओं को
भी मालूम है,
मगर, एक मैं
ही हूँ जो
अनजान बना बैठा
हूँ ....
तेरे प्यार और साथ
की एक............ ज़ंजीर
नज़र आती है
लिखू तो क्या
लिखू.. हर पन्ने
पे तेरी तस्वीर
नज़र आती है
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