13 January, 2014

ANUGRAH MISHRA

ANUGRAH MISHRA







मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे
इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे

हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेडो मत
हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे

थोडी आँच बची रहने दो थोडा धुँआ निकलने दो
तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफिर आयेंगे

उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती
वे आये तो यहाँ शंख सीपियाँ उठाने आयेंगे

फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम
अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आयेंगे

रह-रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे और बढे तो शायद दृश्य सुहाने आयेंगे

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे

हम क्यों बोलें इस आँधी में कई घरौंदे टूट गये
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जयेंगे

हम इतिहास नहीं रच पाये इस पीडा में दहते हैं
अब जो धारायें पकडेंगे इसी मुहाने आयेंगे


ANUGRAH MISHRA-

ANUGRAH MISHRA

05 January, 2014

AKSHAT- THE BEST CREATION OF GOD..

AKSHAT(MY BHANJA)--ANUGRAH MISHRA
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है ।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।

जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते ।
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है ।
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है ।

मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी,
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ ।
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ ।

मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है ।
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे ।
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,

स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे


ANUGRAH MISHRA - NEW YEAR 2014

ANUGRAH MISHRA

"जायचा देख के बोला ये नज़ूमी मुझ से ,
जो भी माँगा है वो हर हाल में मिल जायेगा ,
क्या मुबारक है नया साल जो मैं खुश होऊं ?
वो जो बिछुड़ा है क्या इस साल में मिल जायेगा?"


courtesy.. kumar vishwas 

01 January, 2014

HAPPY NEW YEAR

ANUGRAH MISHRA
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, अभिनंदन नववर्ष तुम्हारा 

देकर नवल प्रभात विश्व को, हरो त्रस्त जगत का अंधियारा 

हर मन को दो तुम नई आशा, बोलें लोग प्रेम की भाषा 
समझें जीवन की सच्चाई, पाटें सब कटुता की खाई 

जन-जन में सद्भाव जगे, औ घर-घर में फैले उजियारा।। 
स्वागत है नववर्ष तुम्हारा 

मिटे युद्ध की रीति पुरानी, उभरे नीति न्याय की वाणी 
भय आतंक द्वेष की छाया का होवे संपूर्ण सफाया 

बहे हवा समृद्धि दायिनी, जग में सबसे भाईचारा।। 
स्वागत है नववर्ष तुम्हारा 

करे न कोई कहीं मनमानी दुख आंखों में भरे न पानी 
हर बस्ती सुख शांति भरी हो, मुरझाई आशा लता हरी हो 

भूल सके जग सब पी़ड़ाएं दुख दर्दों क्लेशों का मारा।। 
स्वागत है नववर्ष तुम्हारा 

वातावरण नया बन जाए, हर दिन नई सौगातें लाए 
सब उदास चेहरे मुस्काएं, नए विचार नए फूल खिलाएं 

ममता की शीतल छाया में जिए सुखद जीवन जग सारा।। 
स्वागत है नववर्ष तुम्हारा

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